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Showing posts from January, 2024

राम भला कैसे इनकार करते।

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कहते हैं लंका से लौटने के बाद और राज्याभिषेक के बाद माता सुनयना ने जँवाई बेटा को मिथिला आने का सासू माँ का लाड़ भरा आग्रह भेजा। राम भला कैसे इनकार करते। लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न को भी ससुराल जाने का चाव पूरा हुआ। हनुमान उन दिनों वहीं थे सो उनको भी आने का आग्रह हुआ। सुग्रीव, अंगद, नल, नील आदि ने प्रभु से शिकायत की कि ये तो सरासर पक्षपात है। मंद मंद मुस्कुराते हुए प्रभु ने सबको स्वीकृति दे दी। वानरों से भलीभांति परिचित डिग्निटी पसंद लक्ष्मण की पेशानियों पर बल पड़ गए कि कहीं संभ्रांत आर्य नागर परंपरा से अनभिज्ञ सरल परंतु उजड्ड वानर ससुराल में भैया के साथ साथ पूरे रघुवंश को हमेशा के लिए हंसी का पात्र न बना दें। लक्ष्मण इस बात से भली भांति परिचित थे कि औपनिषदिक जनक परंपरा के गंभीर राजाओं की श्रृंखला के बावजूद मिथिला वाले किसी की टांग खींचकर मजे लेने से कभी बाज नहीं आते हैं और बुरा मानने पर कवित्तों के माध्यम से सदियों तक ताना देने में समर्थ हैं। लेकिन भैया का आदेश टाल भी नहीं सकते थे इसलिए उन्होंने सुग्रीव, हनुमान, अंगद, नल नील आदि को नागर परंपराओं की ट्रेनिंग देना शुरू किया और बाकी वानरों से ...

जापान को याद है, लेकिन भारत भूल गया!

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वह दिन था... 12 नवंबर, 1948... टोक्यो के बाहरी इलाके में एक विशाल बगीचे वाले घर में टोक्यो ट्रायल चल रहा है। द्वितीय विश्वयुद्ध में हारने के बाद, जापान के तत्कालीन प्रधान मंत्री तोजो सहित पचपन जापानी युद्ध बन्दियों का मुकदमा चालू है... इनमें से अट्ठाइस लोगों की पहचान क्लास-ए (शांतिभंग का अपराध) युद्ध अपराधियों के रूप में की गई है। यदि सिद्ध ह़ो जाता है, तो एकमात्र सजा "मृत्युदण्ड" है। दुनिया भर के ग्यारह अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधीश... "दोषी" की घोषणा कर रहे हैं... "दोषी"... "दोषी"... अचानक एक गर्जना, "दोषी नहीं!" दालान में सन्नाटा छा गया। यह अकेला असंतुष्ट कौन है? उनका नाम था राधा बिनोद पाल, भारत से एक न्यायाधीश थे! 1886 में पूर्वी बंगाल के कुंभ में उनका जन्म हुआ। उनकी माँ ने अपने घर और गाय की देखभाल करके जीवन यापन किया। बालक राधा बिनोद गाँव के प्राथमिक विद्यालय के पास ही गाय को चराने ले जाता था। जब शिक्षक स्कूल में पढ़ाते थे, तो राधा बाहर से सुनता था। एक दिन स्कूल इंस्पेक्टर शहर से स्कूल का दौरा करने आये। उन्होंने कक्षा में प्रवेश करने के...

Desh bhakto ki kahani

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 यह जो मायावती के साथ दाढ़ी वाले सज्जन दिखाई दे रहे हैं ना यही कृष्ण बनकर आए थे द्रोपदी बनी मायावती की लाज बचाने 2जून 1995 में लखनऊ गैस्ट हाउस में। RSS से मिली लाठी चलाने की शिक्षा-दीक्षा ने उस दिन मायावती की इज्जत को तार-तार होने से बचा लिया। एक अकेला व्यक्ति कुशलतापूर्वक दंड चलाता हुआ समाजवादी गुंडों की भीड़ में घुस गया और मायावती को बचा कर लाया और बाद में गुंडों की गोली से हमारे यही जांबाज़ भाजपा विधायक "ब्रम्हदत्त द्विवेदी" शहीद हुए। संघ और भाजपा की आलोचना करने वाली मायावती तब साड़ी पहना करती थी और गैस्ट हाउस कांड के बाद सूट पहनने लगी। मायावती ने समाज मे फैले इस भ्रम को भी दूर कर दिया की औरत सब को माफ कर सकती है पर अपनी इज्जत पर हाथ डालने वाले को कभी माफ नहीं करती। ऐसी मौकापरस्त औरतें सिर्फ अपनी वेशभूषा ही नहीं बदलती वरन अपने विचार भी बदल लेती हैं।